नमस्कार दोस्तो taajaknowledge.com के इस पोस्ट में आपका स्वागत है। यदि आप सब ज्ञानेंद्रियॉ से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी पाना चाहते है तो ये पोस्ट बिलकुल आपके लिए ही है । आप सब इस पोस्ट के पढ़ने के बाद अपनी राय हमे हमारे ईमेल kk0098763@gmail.com मेल करके या पोस्ट के नीचे दिए गए कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से भी दे सकते है । तो चलिए जानते है ज्ञानेंद्रियॉ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण जानकारी-
ज्ञानेंद्रियॉ
शरीर का वैसे अंग जो बाहरी वातावरण का आभास कराते है वैसे अंग को ज्ञानेंद्रियॉ कहते है। इसकी संख्या 5 होती है , आँख, कान, नाक, त्वचा तथा जीभ। ज्ञानेंद्रियों का महत्व अत्यधिक है क्योंकि ये हमें अपने आस-पास के विश्व को समझने और उसमें सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। ज्ञानेंद्रियों को उन पाँच इन्द्रियों के रूप में जाना जाता है जिनसे हम विश्व को अनुभव करते हैं – सुनना, देखना, सूँघना, चखना, और स्पर्श करना।
ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ही हम अपने आस-पास के विश्व को समझते हैं और अपने अनुभवों को आत्मशांति, आनंद और शांति के साथ साझा करते हैं। इन्हें सुरक्षित रखना और सावधानी बरतना महत्वपूर्ण है ताकि हम अपने ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से प्राप्त अनुभवों का समान रूप से आनंद ले सकें। इस प्रकार, ज्ञानेंद्रियों का महत्व अत्यधिक है और हमें इनका सावधानी से ध्यान रखना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को समृद्ध और संतुलित बना सकें।
आंख ( ज्ञानेंद्रियॉ )
हमारा नेत्र उतल लेंस की तरह काम करता है। नेत्र का सबसे चमकीला भाग लेंस ही होता है। जिस व्यक्ति के नेत्र के लेंस पर मांस की पतली परत छा जाती है उसे मोतियाबिंद बीमारी के नाम से जाना जाता है । नेत्र का पिछला भाग रेटीना कहलाता है। नेत्र जिस वस्तु को देखता है उसका प्रतिबिंब रेटीना पे बनता है । जो वस्तु से हमेशा छोटा, वास्तविक तथा उल्टा होता है।
![ज्ञानेंद्रियॉ नेत्र का चित्र](https://i0.wp.com/taajaknowledge.com/wp-content/uploads/2024/03/Dofoto_20240330_155636540.jpg?resize=750%2C492&ssl=1)
परितारिका
जब हमारे नेत्र में प्रकाश जाता है तब उसे नियंत्रित करने काम परितरिका का ही होता है। कम तिव्रता का प्रकाश आने पे यह फैल जाता है जबकि ज्यादा तिव्रता का प्रकाश आने पे यह सिकुड़ जाता है। यह मुख्यतः तीन रंगों का हो सकता है- काला, नीला तथा भूरा ।
पुतली
यह परितारिक के बीच में पाया जाता है। यह काला रंग का होता है। इसी के माध्यम के प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है। आंख की पुतली, जिसे आंख का पर्दा भी कहा जाता है, आंख की एक महत्वपूर्ण अंग होती है।
स्क्लेरा
नेत्र के बाहर दिखने वाला सफेद भाग को स्क्लेरा कहते है। आंख की स्क्लेरा, जिसे “काँच का फुत्का” भी कहा जाता है, आंख की बाहरी ऊतक होती है। यह आंख को आकार और स्थिति में सहारा प्रदान करती है और इसे सुरक्षित रखने में मदद करती है।
कॉर्निया
नेत्र के सबसे बाहरी झिल्ली को कॉर्निया कहते है। यह रक्त के सम्पर्क में नही रहता है। इसे नेत्र का टेम्पर ग्लास भी कहा जाता है। नेत्र का दान करते समय कॉर्निया ही दिया जाता है । कॉर्निया का अधिकांश हिस्सा पानी के समान होता है, जो इसे ट्रांसपैरेंट बनाता है और आंख के अंदरी ऊतकों को प्रकाश की पहुंच में मदद करता है।
आँख का भीतरी भाग
लेंस – मानव के नेत्र में उतल लेंस पाया जाता है। इस लेंस को 6 मांसपेशीयां पकड़ी रहती है। यह चमकीला होता है तथा प्रकाश को रेटीना पे फोकस करता है।
रक्तपटल – यह रेटीना से जुड़ा रहता है। इसका मुख्य कार्य ब्लड को सप्लाई करना है।
नेत्रोद – यह परितारिक तथा लेंस के बीच में भरा हुआ एक द्रव है जो लेंस की रक्षा करता है।
दृष्टि पटल – यह नेत्र का पिछला भाग होता है। जब हम किसी वस्तु को देखते है तो उसका प्रतिबिंब इसपे ही बनता है। रेटीना के पीछे प्रकाशिक तंतु निकली होती है जिसका काम दृष्टि को मस्तिष्क तक ले जाना होता है। प्रकाशिक तंतु दो प्रकार के होते है शंकूकार तथा बेलनाकार। शंकुकार तंतु का कार्य रंगों का आभास कराना होता है जबकि बेलनाकार तंतु का काम प्रकाश की तीव्रता बताना होता है।
नेत्र से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
हमारे नेत्रों में लेक्राइमल नाम की एक ग्रंथी पाई जाती है जो आंसू बनाती है। आंसू में लाइसोजाइम नामक एंजाइम होता है जो कीटाणुओ को मार देती है। कुछ जानवरों की नेत्रों में टिपीडम लुसिडम नामक द्रव पाया जाता है जिस कारण उनकी आंखे रात में चमकती है। रिडोप्सीन नामक प्रोटीन का उपयोग रतौधी बीमारी को ठीक करने में किया जाता है। रक्त वर्णाधता नामक बीमारी में लाल तथा हरा रंग की पहचान करने की क्षमता खत्म हो जाती है।
कान ( ज्ञानेंद्रियॉ )
यह हमारे शरीर का एक अवशेषी अंग है। यह उपास्थि का बना होता है । इसका मुख्य कार्य शरीर के संतुलन को बनाए रखना है तथा द्वितीयक कार्य किसी चीज की ध्वनी को सुनना है। कान के बाहरी भाग को कर्ण पल्लव कहते है। कान के अंदर कान का परदा नाम का एक झिल्ली पाया जाता है जो ध्वनी तरंगों में कम्पन उत्पन करता है। इसमें छिद्र हो जाने के कारण कम्पन की क्रिया कम हो जाती है जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। कान के मध्य में तीन हड्डिया होती है जिसे मैलिपस इनकी स्टेप्स कहते हैं।
ध्वनी 👂 Ear Canal से होकर Ear Drum पर कम्पन करती है। कान की हड्डियां कम्पन के आयाम को बढ़ा देती है। कान की Cochlea कम्पन के ध्वनी सिग्नल में बदलकर मस्तिष्क को पहुंचती है। कान से होते हुवे एक नस गले से आकार मिलती है। जब हमें कही अचानक जोर की ध्वनी सुनाई देती है तब हमारे मुख अपने आप खुल जाते है ताकि कान में वायु का दाब को संतुलित किया जा सके।
![ज्ञानेंद्रियॉ कान का चित्र](https://i0.wp.com/taajaknowledge.com/wp-content/uploads/2024/03/Dofoto_20240330_160034363.jpg?resize=750%2C527&ssl=1)
नाक ( ज्ञानेंद्रियॉ )
नाक हमारे शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । यह हमे श्वसन तथा किसी चीज की सुगंध अथवा दुर्गंध को सूंघने में मदद करती है। नाक में Offactory Nerve/Love करोड़ों की संख्या में पाई जाती है। जो गंध को मस्तिष्क के कारपोरा तक पहुंचने का काम करती है।
यह वायु को श्वासने में मदद करता है और श्वास लेने के लिए नाक से गुजरे हुए वायु को प्रदान करता है। नाक में अनेक छोटे-छोटे अंग होते हैं, जिनमें नाकांश, अधिनासिका, नाक की अनुनासिका, और नाक की हड्डियाँ शामिल होती हैं।इसके अलावा, नाक के अंदर अंधकोष होता है जो की संतोषी स्थिति में रहता है ताकि हवा नाक के द्वारा आ सके, परन्तु अदृश्य अणु न के लिए अंधकोष बंद होता है।
![ज्ञानेंद्रियॉ नाक का चित्र](https://i0.wp.com/taajaknowledge.com/wp-content/uploads/2024/03/Dofoto_20240330_155822882.jpg?resize=750%2C502&ssl=1)
त्वचा ( ज्ञानेंद्रियॉ )
यह हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग है। इसमें सात परते होतीहै। इसका आंतरिक भाग संयोजि उतक का बना होता है। इसका जीवन काल 4 सप्ताह या 28 दिनों का होता है। इसकी मोटाई 0.5 – 2 mm तक होती है। इसके अध्ययन को डार्मेटोलॉजी कहते है। त्वचा में मेलानिन पाया जाता है जो त्वचा तथा बालो को काला कर देता है। यह मेलानिन हमारे शरीर को पाराबैगनी किरणों से रक्षा करती है।
इपिडर्मिश
त्वचा के सबसे परत को इपिडर्मिश कहते है। इसमें रक्त नही पाया जाता है । इसमें मैलानिन पाया जाता है । इसमें परतों की संख्या 5 होती है।
डर्मिस
त्वचा के अंदर के भाग को डर्मिस कहते है। इसमें परतों की संख्या 2 होती है। चमड़ा उद्योग में चमड़े का आंतरिक भाग का उपयोगकिया जाता है। इस से जूता, बेल्ट तथा पर्स आदि बनाया जाता है।
• तैलीय पदार्थ ग्रन्थि – इस ग्रन्थि का मुख्य काम तैलीय पदार्थ सीबाम का निर्माण करना है जो त्वचा को मुलायम तथा चिकना रखता है। सीबम हिबौर्य के प्रकाश में विटामिन डी का संश्लेषण करता है।
• श्वेत ग्रन्थि – श्वेत का अर्थ पसीना होता है। यह ग्रंथी का मुख्य काम पसीना का उत्सर्जन करना है।
![ज्ञानेंद्रियॉ त्वचा का चित्र](https://i0.wp.com/taajaknowledge.com/wp-content/uploads/2024/03/Dofoto_20240330_160156744.jpg?resize=750%2C398&ssl=1)
जीभ ( ज्ञानेंद्रियॉ )
जीभ मुखगुहा के अंदर पाया जाता है। जिसका मुख्य कार्य स्वाद की जानकारी देना है। इसके बीच भाग से किसी भी स्वाद का पता नही चलता है। जीभ का आगे का भाग मीठा को बताता है जबकि अग्रपार्श्व नमकीन को बताता है। इसका पाश्चपार्श्व खट्टा को बताता है जबकि जीभ का पाश्च भाग तीखा को बताता है। स्वाद बताने का कार्य Test Bud करता है। यह आगे छोटा होता है तथा पीछे की ओर मोटा होता है।
![ज्ञानेंद्रियॉ जीभ का चित्र](https://i0.wp.com/taajaknowledge.com/wp-content/uploads/2024/03/Dofoto_20240330_160515044.jpg?resize=750%2C750&ssl=1)
ग्रन्थि के बारे में जानने के लिए इस लिंक का प्रयोग करेhttps://taajaknowledge.com/%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%82%e0%a4%a5%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a4%a5%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%a8-2024/
ज्ञानेंद्रियॉ से जुड़ी और जानकारी के लिए इस लिंक का उपयोग करे https://hi.wiktionary.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF